BAEC(N)101 SOLVED PAPER 2024

 BAEC(N)101 व्यष्टि अर्थशास्त्र 

                   बीए प्रथम वर्ष 2024

                  प्रश्न पत्र हल।            

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       BAEC(N)101 SOLVED PAPER 


Question 1. अर्थशास्त्र में संतुलन के विभिन्न प्रकारों की विवेचना कीजिए।

Answer:

अर्थशास्त्र में संतुलन का मतलब होता है, जब मांग और आपूर्ति के बीच एक आदर्श समन्वय होता है। संतुलन के तीन मुख्य प्रकार होते हैं: स्थिर संतुलन, अस्थिर संतुलन, और तटस्थ संतुलन। स्थिर संतुलन वह स्थिति है, जिसमें यदि बाजार में कोई विक्षोभ आता है, तो वह स्वाभाविक रूप से पुनः संतुलन की स्थिति में वापस आ जाता है। उदाहरण के लिए, यदि किसी वस्तु की मांग बढ़ जाती है, तो उसकी कीमत भी बढ़ेगी, लेकिन समय के साथ कीमत और मात्रा फिर से स्थिर हो जाएगी। अस्थिर संतुलन में, बाजार विक्षोभ के बाद संतुलन की स्थिति में वापस नहीं आ पाता, बल्कि विक्षोभ बढ़ता ही जाता है। उदाहरण के लिए, अगर किसी वस्तु की कीमत कम हो जाती है और इसके कारण मांग बहुत अधिक बढ़ जाती है, तो कीमतें और भी ज्यादा गिर सकती हैं। तटस्थ संतुलन में, विक्षोभ का बाजार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। किसी भी विक्षोभ के बाद बाजार एक नई संतुलन स्थिति में पहुँच जाता है। ये तीनों प्रकार के संतुलन विभिन्न बाजार स्थितियों और आर्थिक नीतियों पर निर्भर करते हैं। इसके अतिरिक्त, आंशिक संतुलन और सामान्य संतुलन भी दो अन्य महत्वपूर्ण संतुलन प्रकार हैं। आंशिक संतुलन का अध्ययन किसी एक बाजार या क्षेत्र में किया जाता है, जबकि सामान्य संतुलन का अध्ययन संपूर्ण अर्थव्यवस्था में किया जाता है। इन सभी संतुलन प्रकारों का अध्ययन अर्थशास्त्रियों द्वारा विभिन्न आर्थिक नीतियों और परिस्थितियों को समझने और लागू करने में किया जाता है।


Question:2. मांग की लोच से आप क्या समझते हैं? मांग की कीमत लोच की श्रेणियों को स्पष्ट कीजिए।

Answer:

मांग की लोच का मतलब होता है, किसी वस्तु की कीमत में बदलाव के साथ मांग की मात्रा में होने वाला परिवर्तन। मांग की लोच को कीमत लोच भी कहा जाता है और यह मांग की संवेदनशीलता को दर्शाती है। इसकी मुख्य तीन श्रेणियाँ हैं: अति लोचदार, अल्प लोचदार, और एकक लोचदार मांग। अति लोचदार मांग (Elastic Demand) में, किसी वस्तु की कीमत में छोटे बदलाव के कारण मांग में बड़ा परिवर्तन होता है। उदाहरण के लिए, विलासिता वस्तुएं, जैसे कि महंगे ब्रांड के कपड़े या गहने, जिनकी कीमत में छोटे बदलाव से मांग में बहुत बड़ा असर पड़ता है। अल्प लोचदार मांग (Inelastic Demand) में, किसी वस्तु की कीमत में बड़े बदलाव के बावजूद मांग में बहुत कम परिवर्तन होता है। आवश्यक वस्तुएं, जैसे कि दवाएं या पेट्रोल, जिनकी कीमत में बड़े बदलाव से भी मांग लगभग स्थिर रहती है, अल्प लोचदार मांग के उदाहरण हैं। एकक लोचदार मांग (Unitary Elastic Demand) में, कीमत में प्रतिशत बदलाव के बराबर ही मांग में प्रतिशत बदलाव होता है। यह एक आदर्श स्थिति है, जिसमें कुल राजस्व अपरिवर्तित रहता है, क्योंकि कीमत और मात्रा एक दूसरे को संतुलित करते हैं। इसके अलावा, पूर्णतः लोचदार (Perfectly Elastic) और पूर्णतः अल्प लोचदार (Perfectly Inelastic) मांग की श्रेणियाँ भी होती हैं। पूर्णतः लोचदार मांग में, कीमत के थोड़े से बदलाव से मांग अनंत हो जाती है, जबकि पूर्णतः अल्प लोचदार मांग में, कीमत के बदलाव का मांग पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। इन श्रेणियों को समझने के लिए मांग की लोच की गणना और उसकी व्याख्या आवश्यक होती है।


Question :3. 'परिवर्तनशील अनुपातों के नियम' की सचित्र व्याख्या कीजिए।

Answer:

परिवर्तनशील अनुपातों का नियम, जिसे लॉ ऑफ वेरिएबल प्रपोर्शन्स भी कहा जाता है, उत्पादकता सिद्धांत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस नियम के अनुसार, जब उत्पादन प्रक्रिया में एक इनपुट को बढ़ाया जाता है, जबकि अन्य इनपुट स्थिर रहते हैं, तो प्रारंभ में उत्पादन में बढ़ोतरी होती है, लेकिन एक समय के बाद उत्पादन की दर घटने लगती है। इसे तीन चरणों में विभाजित किया जा सकता है। पहले चरण में, उत्पादन में बढ़ोतरी तेजी से होती है। उदाहरण के लिए, एक खेत में अधिक मजदूर लगाने से प्रारंभ में फसल उत्पादन में वृद्धि होती है। इस चरण को बढ़ते रिटर्न का चरण कहा जाता है। दूसरे चरण में, उत्पादन में वृद्धि की दर धीमी हो जाती है, जिसे घटते रिटर्न का चरण कहा जाता है। इस चरण में, अधिक मजदूर लगाने पर भी उत्पादन की दर में अधिक वृद्धि नहीं होती। तीसरे चरण में, उत्पादन की दर घटने लगती है, जिसे नकारात्मक रिटर्न का चरण कहा जाता है। इस चरण में, अतिरिक्त मजदूर लगाने से उत्पादन की दर घटने लगती है और कभी-कभी उत्पादन कम भी हो सकता है। परिवर्तनशील अनुपातों का नियम कृषि और उद्योग दोनों में महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह संसाधनों के उचित प्रबंधन और उत्पादकता के अधिकतम उपयोग में मदद करता है। इस नियम को समझने के लिए विभिन्न उत्पादन कार्यों के अध्ययन और विश्लेषण की आवश्यकता होती है। इसे ग्राफिकली प्रदर्शित करने के लिए उत्पादन का ग्राफ तैयार किया जाता है, जिसमें x-अक्ष पर मजदूरों की संख्या और y-अक्ष पर उत्पादन की मात्रा दर्शाई जाती है। तीनों चरणों को इस ग्राफ में स्पष्ट रूप से दिखाया जा सकता है।


Question :4. एकाधिकाधिकारीक प्रतियोगिता का अर्थ एवं विशेषताएं लिखिए।

Answer:

एकाधिकाधिकारीक प्रतियोगिता (Monopolistic Competition) बाजार की एक संरचना है, जिसमें कई विक्रेता होते हैं और वे विभिन्न उत्पाद बेचते हैं जो एक दूसरे के प्रतिस्थापन होते हैं, लेकिन पूर्णतः समान नहीं होते। इसका मुख्य अर्थ यह है कि प्रत्येक विक्रेता का उत्पाद कुछ न कुछ विशिष्टता रखता है। एकाधिकाधिकारीक प्रतियोगिता की मुख्य विशेषताएं हैं: उत्पाद विभेदन (Product Differentiation), जिसमें प्रत्येक विक्रेता अपने उत्पाद को दूसरों से अलग दिखाने का प्रयास करता है। यह विभेदन गुणवत्ता, ब्रांडिंग, पैकेजिंग, या अन्य विशेषताओं के आधार पर हो सकता है। विक्रेताओं की बड़ी संख्या (Large Number of Sellers), जिससे बाजार में प्रतिस्पर्धा बनी रहती है और कोई भी विक्रेता बाजार पर पूर्ण नियंत्रण नहीं रख सकता। इस प्रकार के बाजार में प्रवेश और निकास की स्वतंत्रता होती है, जिससे नए विक्रेता आसानी से बाजार में प्रवेश कर सकते हैं और वर्तमान विक्रेता बाहर निकल सकते हैं। विक्रेताओं के पास मूल्य निर्धारण की स्वतंत्रता होती है, लेकिन यह स्वतंत्रता सीमित होती है क्योंकि प्रतियोगिता के कारण वे अपनी कीमतें बहुत अधिक नहीं बढ़ा सकते। एकाधिकाधिकारीक प्रतियोगिता में विज्ञापन और बिक्री प्रोत्साहन का महत्वपूर्ण स्थान होता है। विक्रेता अपने उत्पाद की मांग बढ़ाने के लिए विभिन्न प्रचार तकनीकों का उपयोग करते हैं। इस प्रकार की प्रतियोगिता में उपभोक्ताओं के पास चयन की विविधता होती है और वे अपने पसंदीदा उत्पादों को चुन सकते हैं। हालांकि, इस प्रकार की प्रतियोगिता से संसाधनों का अपव्यय भी हो सकता है, क्योंकि कंपनियाँ अधिकतम लाभ प्राप्त करने के लिए विज्ञापन और प्रचार पर भारी खर्च करती हैं। एकाधिकाधिकारीक प्रतियोगिता बाजार की एक वास्तविक और व्यापक रूप है, जिसे विभिन्न उद्योगों में देखा जा सकता है।


Question :5. वितरण के सीमांत उत्पादकता सिद्धांत की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।

Answer:

सीमांत उत्पादकता सिद्धांत (Marginal Productivity Theory) के अनुसार, उत्पादन में प्रत्येक इनपुट का योगदान उसकी सीमांत उत्पादकता के अनुसार होता है। इस सिद्धांत का मुख्य तात्पर्य यह है कि किसी इनपुट की कीमत (मजदूरी, किराया, ब्याज, आदि) उसकी सीमांत उत्पादकता के बराबर होती है। इसका अर्थ यह है कि यदि किसी श्रमिक की सीमांत उत्पादकता बढ़ती है, तो उसकी मजदूरी भी बढ़ेगी। इस सिद्धांत की कई आलोचनाएँ हैं। सबसे पहले, यह सिद्धांत केवल प्रतिस्पर्धी बाजार की परिस्थितियों में ही लागू होता है। वास्तविक दुनिया में कई बाजार प्रतिस्पर्धात्मक नहीं होते, जैसे कि एकाधिकार या ओलिगोपोली। दूसरी आलोचना यह है कि यह सिद्धांत उत्पादन प्रक्रिया में सभी इनपुट के योगदान को सही ढंग से मापने में असमर्थ है। उत्पादन में विभिन्न इनपुट का योगदान अलग-अलग हो सकता है, और सभी इनपुट की सीमांत उत्पादकता को सही ढंग से मापना मुश्किल होता है। तीसरी आलोचना यह है कि सीमांत उत्पादकता सिद्धांत आय वितरण की असमानताओं को दूर करने में असमर्थ है। इस सिद्धांत के अनुसार, यदि किसी व्यक्ति की सीमांत उत्पादकता कम है, तो उसकी आय भी कम होगी, भले ही वह व्यक्ति मेहनती और ईमानदार हो। चौथी आलोचना यह है कि यह सिद्धांत तकनीकी प्रगति और अन्य बाहरी कारकों को ध्यान में नहीं रखता। तकनीकी प्रगति के कारण उत्पादन में वृद्धि हो सकती है, लेकिन यह सभी इनपुट की सीमांत उत्पादकता को समान रूप से प्रभावित नहीं करता। अंततः, सीमांत उत्पादकता सिद्धांत एक सैद्धांतिक मॉडल hai. 


Short Answer Type Questions:


Question:1. **व्यष्टि अर्थशास्त्र के महत्व को लिखिए:**

Answer:

   - व्यष्टि अर्थशास्त्र हमें व्यक्तिगत इकाइयों, जैसे उपभोक्ता और फर्मों के व्यवहार का अध्ययन करने में मदद करता है। यह समझने में सहायक होता है कि कैसे कीमतें निर्धारित होती हैं, कैसे मांग और आपूर्ति कार्य करती हैं, और कैसे व्यक्ति अपने संसाधनों का आवंटन करते हैं। इससे हमें बेहतर आर्थिक नीतियाँ बनाने में मदद मिलती है।


2. **अनाभिमान वक्र की सहायता से उपभोक्ता संतुलन की स्थिति को स्पष्ट कीजिए:**

 Answer  - उपभोक्ता संतुलन तब प्राप्त होता है जब उपभोक्ता अपने सीमित संसाधनों का उपयोग करते हुए अधिकतम संतोष प्राप्त करता है। अनाभिमान वक्र उपभोक्ता की संतुष्टि के विभिन्न स्तरों को दर्शाता है। बजट रेखा और अनाभिमान वक्र के स्पर्श बिंदु पर उपभोक्ता संतुलन प्राप्त करता है, जहां उसकी सीमांत उपयोगिता और कीमत अनुपात बराबर होती है।


3. **सम-सीमांत उपयोगिता नियम क्या है:**

  Answer - यह नियम कहता है कि उपभोक्ता अपनी आय को विभिन्न वस्तुओं पर इस प्रकार खर्च करता है कि प्रत्येक वस्तु की अंतिम इकाई से प्राप्त उपयोगिता समान हो। इसे संतुलित उपयोगिता प्राप्त करने का नियम भी कहा जाता है।


4. **उपभोक्ता की बचत से आप क्या समझते हैं:**

   Answer- उपभोक्ता की बचत वह अंतर है जो उपभोक्ता द्वारा किसी वस्तु की अधिकतम कीमत चुकाने की इच्छा और वास्तविक चुकाई गई कीमत के बीच होता है। यह उपभोक्ता को प्राप्त अतिरिक्त संतोष को दर्शाता है।


5. **किसी फर्म में 'औसत आय' एवं 'सीमांत आय' को धारणाओं के मध्य अंतर बताइए:**

 Answer  - औसत आय फर्म की कुल आय को बेची गई कुल इकाइयों की संख्या से विभाजित करके प्राप्त होती है। जबकि सीमांत आय वह अतिरिक्त आय है जो एक अतिरिक्त इकाई बेचने पर प्राप्त होती है। औसत आय समग्र प्रदर्शन दर्शाती है, जबकि सीमांत आय अतिरिक्त उत्पादन के लाभ को दर्शाती है।


6. **पूर्ण प्रतियोगिता पर संक्षिप्त में टिप्पणी लिखिए:**

   Answer- पूर्ण प्रतियोगिता एक ऐसी स्थिति है जिसमें बहुत सारे विक्रेता और खरीदार होते हैं, और कोई भी विक्रेता या खरीदार बाजार मूल्य को प्रभावित नहीं कर सकता। इसमें सभी फर्में समान वस्तु बेचती हैं, बाजार में स्वतंत्र प्रवेश और निकास की स्थिति होती है, और सभी को संपूर्ण जानकारी होती है।


7. **समोपाद वक्रों की विशेषताएं लिखिए:**

  Answer - समोपाद वक्र वे वक्र होते हैं जो उत्पादन के विभिन्न संयोजनों को दर्शाते हैं जो समान उत्पादन स्तर देते हैं। ये वक्र अवतल होते हैं और एक-दूसरे को कभी काटते नहीं। इनका ढलान सीमांत दर प्रतिस्थापन को दर्शाता है, जो बताता है कि एक वस्तु को दूसरी से कितनी मात्रा में बदला जा सकता है।


8. **मजदूरी से आप क्या समझते हैं:**

Answer   - मजदूरी वह भुगतान है जो श्रमिकों को उनके श्रम के बदले दिया जाता है। यह श्रमिकों की आर्थिक स्थिति को प्रभावित करता है और उनके जीवन स्तर को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मजदूरी में मौद्रिक और गैर-मौद्रिक लाभ दोनों शामिल हो सकते हैं।

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